प्रधानमंत्री भव्य विजयादशमी समारोह में राष्ट्रपति के साथ हुए, शामिल
नई दिल्ली:बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नई दिल्ली में भव्य विजयादशमी कार्यक्रम और समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के साथ शामिल हुए।
नई दिल्ली:बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नई दिल्ली में भव्य विजयादशमी कार्यक्रम और समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के साथ शामिल हुए।
दिल्ली:कर्नाटक के बेंगलुरु में भी कुछ समुदाय के लोग रावण की पूजा करते हैं। यहां रावण की पूजा-अर्चना तो होती ही है, साथ ही उनके महान ज्ञान और शिव के लिए अनन्य भक्त की वजह से भी उन्हें आदर भाव दिया जाता है। इसलिए यहां दशहरे पर रावण दहन नहीं किया जाता। उत्तर प्रदेश के बिसरख गांव को लेकर मानता है कि यहां रावण का जन्म हुआ था और इसलिए यहां के लोग रावण को अपना पूर्वज मानते हैं। साथ ही ऋषि विश्रवा का पुत्र होने की वजह से रावण को महा ब्राह्मण भी माना जाता है। ऐसे में दशहरे के दिन यहां रावण दहन की जगह उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की जाती है। गढ़चिरौली, महाराष्ट्र की इस जगह पर रहने वाले गोंड जनजाति के लोग खुद को रावण का वंशज मानते हैं। उनका ऐसा मानना है कि सिर्फ तुलसीदास रचित रामायण में रावण को बुरा दिखाया गया है, जो कि गलत है। इसलिए वे रावण को अपना पूर्वज मान उनकी पूजा करते हैं और रावण का पुतला नहीं जलाते। मध्य प्रदेश के मंदसौर में रावण दहन नहीं किया जाता। ऐसा इसलिए क्योंकि इस शहर को रावण की पत्नी मंदोदरी का मायका कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि मंदोदरी यही की रहने वाली थी और इसलिए रावण यहां दामाद माना जाता है। इसी मान्यता के अनुसार यहां रावण का दहन नहीं, बल्कि उनकी पूजा होती है। मंडोर राजस्थान के इस गांव में भी दशहरे पर रावण दहन नहीं किया जाता। ऐसा इसलिए क्योंकि यहां के लोगों का मानना है कि यह जगह मंदोदरी के पिता की राजधानी थी और यहीं पर रावण ने उनसे विवाह किया था। इसलिए रावण को दामाद मानने की वजह से यहां के लोग उनका सम्मान करते हैं और उनका पुतला नहीं जलाते।
दिल्ली:प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने वियनतियाने, लाओस में 19वें पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में भाग लिया, जो भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, जिसने 10 उल्लेखनीय वर्ष पूरे कर लिए हैं। शिखर सम्मेलन के दौरान, पीएम मोदी ने भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी, इंडो-पैसिफिक क्षेत्रीय वास्तुकला, इंडो-पैसिफिक विजन और क्वाड सहयोग में आसियान की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया। उन्होंने स्वतंत्र, खुले, समावेशी और नियम-आधारित इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की आवश्यकता पर बल देते हुए ग्लोबल साउथ में संघर्षों के विनाशकारी प्रभाव पर भी प्रकाश डाला।
रायपुर:आपका चेहरा याद रखना चाहता हूं ताकि जब मैं आपसे स्वर्ग में मिलूं, तो मैं आपको पहचान सकूं और एक बार फिर आपका धन्यवाद कर सकूं।” यह वाक्य रतन टाटा के जीवन का वह क्षण था, जिसने उन्हें सच्चे सुख का अर्थ समझाया।जब एक टेलीफोन साक्षात्कार में भारतीय अरबपति रतन टाटा से रेडियो प्रस्तोता ने पूछा, “सर, आपको जीवन में सबसे अधिक खुशी कब मिली?” तब उन्होंने एक मार्मिक जवाब दिया।जीवन के चार चरणों में खुशी की तलाश रतन टाटा ने कहा, “मैंने जीवन में चार चरणों से गुजरा और अंततः मुझे सच्चे सुख का अर्थ समझ में आया।” पहला चरण धन और साधन संचय करने का था। इस दौरान, मुझे वह खुशी नहीं मिली, जिसकी मुझे उम्मीद थी। फिर दूसरा चरण आया, जब मैंने कीमती सामान और वस्त्रों को इकट्ठा करना शुरू किया। लेकिन मुझे जल्द ही यह एहसास हुआ कि इस सुख का प्रभाव भी अस्थायी है, क्योंकि इन वस्तुओं की चमक ज्यादा देर तक नहीं रहती। तीसरा चरण तब आया जब मैंने बड़े-बड़े प्रोजेक्ट हासिल किए। उस समय मेरे पास भारत और अफ्रीका में डीजल की आपूर्ति का 95% हिस्सा था, और मैं भारत और एशिया में सबसे बड़े इस्पात कारखाने का मालिक था। फिर भी, मुझे वह खुशी नहीं मिली, जिसकी मैंने कल्पना की थी। चौथा और निर्णायक चरण फिर चौथा चरण आया, जिसने मेरे जीवन की दिशा बदल दी। मेरे एक मित्र ने मुझे विकलांग बच्चों के लिए व्हीलचेयर खरीदने के लिए कहा। करीब 200 बच्चे थे। मैंने अपने दोस्त के अनुरोध पर तुरन्त व्हीलचेयर खरीदीं। लेकिन मेरे मित्र ने आग्रह किया कि मैं उनके साथ जाकर खुद उन बच्चों को व्हीलचेयर भेंट करूं। मैंने बच्चों को अपनी हाथों से व्हीलचेयर दीं और उनकी आंखों में जो खुशी की चमक देखी, वह मेरे जीवन में एक नया एहसास लेकर आई। उन बच्चों को व्हीलचेयर पर घूमते और मस्ती करते देखना ऐसा था, मानो वे किसी पिकनिक स्पॉट पर हों और किसी बड़े उपहार का आनंद ले रहे हों। जीवन बदल देने वाला पल जब मैं वापस जाने की तैयारी कर रहा था, तभी एक बच्चे ने मेरी टांग पकड़ ली। मैंने धीरे से पैर छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन उसने और जोर से पकड़ लिया। तब मैं झुककर उससे पूछा, “क्या तुम्हें कुछ और चाहिए?” उस बच्चे का जवाब जीवन बदलने वाला था। उसने कहा, “मैं आपका चेहरा याद रखना चाहता हूं ताकि जब मैं आपसे स्वर्ग में मिलूं, तो मैं आपको पहचान सकूं और एक बार फिर आपका धन्यवाद कर सकूं।” सच्चे सुख का अर्थ इस एक वाक्य ने न केवल रतन टाटा को झकझोर दिया, बल्कि उनके जीवन के प्रति दृष्टिकोण को पूरी तरह से बदल दिया। यह अनुभव उन्हें समझा गया कि सच्ची खुशी दूसरों की सेवा में है, न कि भौतिक संपत्तियों में। अगर हम जीवन में ये सोचकर काम करें कि जब हम इस संसार को छोड़ेंगे, तो हमें किस लिए याद किया जाएगा, क्या हमारा जीवन किसी के लिए इतना महत्वपूर्ण होगा कि वह हमें फिर से देखना चाहे? तो हम सभी के जीवन जीने का तरीक़ा बदल जाएगा। ज़रूरी नहीं कि हम सभी रतन टाटा बन जाएँगे लेकिन जब इस दुनिया को टाटा करेंगे तो आपके आसपास की दुनिया को लगेगा कि एक रत्न चला गया। टाटा…भारत के रतन, फिर किसी देश को बेहतर बनाने के लिए आना 🙏🏻
दिल्ली:प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने श्रद्धांजलि व्यक्त करते हुए कहा रतन टाटा जी एक दूरदर्शी बिजनेस लीडर, दयालु आत्मा और एक असाधारण इंसान थे। उन्होंने कहा रतन टाटा जी के सबसे अनूठे पहलुओं में से एक बड़े सपने देखने और उन्हें वापस देने का जुनून था। वह शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, स्वच्छता, पशु कल्याण जैसे कुछ मुद्दों का समर्थन करने में सबसे आगे थे। उनके निधन से बेहद दुख हुआ। इस दुख की घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके परिवार, दोस्तों और प्रशंसकों के साथ हैं। ॐ शांति.
धमतरी: जिले में जल संरक्षण और आयुर्वेद को लेकर व्यापक जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं। यहां आयुर्वेदिक चिकित्सा और प्राकृतिक चिकित्सा को बढ़ावा देने के लिए एक विशेष प्रयास किया गया है। यह प्रदेश में अपनी तरह का पहला नवाचार है। मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने आयुष विभाग और धमतरी जिला प्रशासन के इस नवाचार की सराहना की है और ज्यादा से ज्यादा वन संपदा को सहजने और लोगों को आयुर्वेद के बारे में जागरूक करने के लिए कहा है।इस पहल के अंतर्गत जिला प्रशासन ने आयुर्वेद को स्थानीय लोगों के जीवन में सम्मिलित करने के लिए विशेष रूप से जिले के वंनाचल ग्राम सिंगपुर (बूटीगढ़) में आयुष रसशाला (औषधीय पेय केंद्र) की स्थापना की गई है। बूटीगढ़ क्षेत्र में प्राकृतिक रूप से औषधिगुणयुक्त पौधे पाये जाते हैं, इसलिए यहां हर्बेरियम का निर्माण किया जा रहा है। औषधिगुणयुक्त पौधों के संवर्धन, प्रचार-प्रसार और उपयोगिता के लिए रसशाला निर्मित किया जा रहा है। इस रसशाला के माध्यम से स्थानीय लोगों, छात्रों और पर्यटकों को रसपान का लाभ मिल सकेगा। आयुर्वेद में पानी का महत्व अनमोल है, क्योंकि यह शरीर के सभी प्रमुख तत्वों को संतुलित रखता है। धमतरी जिले में ’जल जगार’ कार्यक्रम के माध्यम से जल संरक्षण के साथ-साथ आयुर्वेदिक पेय पदार्थों और औषधियों की उपयोगिता को भी प्रदर्शित किया गया।
धमतरी : रविशंकर जलाशय गंगरेल में आयोजित दो दिवसीय जल जगार महा उत्सव के दूसरे दिन रायपुर सहित प्रदेश के अन्य जिलों से प्रतिभागी और लोग पहुँचे। इस दौरान सबमें जल ओलंपिक को लेकर भारी उत्साह देखने को मिला। यहाँ पहुँचे लोगों ने कयाकिंग, स्वींमिंग, बनाना राईड, फ्री स्टाईल स्वीमिंग, फ्लैग् रैन, थ्रो रो, रिवर क्रॉसिंग आदि का भरपूर आनंद लिया। इस अवसर पर रायपुर के संजय बच्चानी, अमित गोयल, राकेश ने धमतरी में जल संरक्षण के लिए की गयी पहल विशेषकर सामुदायिक सहभागिता से किए गए प्रयास और उसके परिणाम को खूब सराहा। प्रतिभागियों का मानना है कि यह केवल शासन-प्रशासन की ज़िम्मेदारी नहीं, बल्कि पूरे समाज की ज़िम्मेदारी है कि जल संरक्षण के लिए जागरूक हों और पानी की हर बूँद को बचाने की कोशिश करें। उन्होंने कहा कि गिरते भूजल स्तर, पेड़ों की कटाई, सॉइल इरोशन सब विषयों पर चिंता करते हुये भविष्य के लिए जल और पर्यावरण संरक्षण हेतु वॉटर हार्वेस्टिंग संरचनायें, पौधारोपण की दिशा में काम करना चाहिए।
दिल्ली: नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने कहा हाल ही में, मैंने गोहाना में स्वादिष्ट जलेबियों और उन्हें अधिक व्यापक रूप से बेचने के अवसर के बारे में बात की। भारत में ऐसे ही छोटे उत्पादकों के 5500 समूह हैं जो सही समर्थन मिलने पर अपने उत्पादों को दुनिया भर में बेच सकते हैं। उन्हें वित्त, प्रौद्योगिकी, नेटवर्क, ब्रांडिंग और बेहतर संगठन प्रदान करने वाली नीतियों की आवश्यकता है। इस समर्थन से, दुनिया न केवल हमारी मिठाई का आनंद ले सकती है, बल्कि सोपोर के सेब, बल्लारी के जींस, कोल्हापुरी चप्पल, मेघालय के अनानास, बिहार के मखाना, मोरादाबाद के पीतल के बर्तन और भी बहुत कुछ का आनंद ले सकती है। बनारसी साड़ियों की वैश्विक सफलता इस बात का एक बड़ा उदाहरण है कि क्या संभव है। भारत को तीव्र आर्थिक विकास की आवश्यकता है जिससे सभी को लाभ हो, और एक अधिक उत्पादक अर्थव्यवस्था की आवश्यकता है जो वैश्विक मंच पर प्रतिस्पर्धा कर सके। यह केवल हमारे छोटे व्यवसायों को सशक्त बनाकर ही किया जा सकता है, न कि मोदीजी की तरह कुछ पूंजीपति कंपनियों पर ध्यान केंद्रित करके।युवा, शिक्षित और ऊर्जावान पीढ़ी की आकांक्षाओं को पूरा करने और भारत के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए भारत को करोड़ों औपचारिक रोजगार सृजित करने का एकमात्र तरीका इस तरह का समावेशी विकास है। नेता प्रतिपक्ष ने कहा भाजपा ने हरियाणा और भारत की अर्थव्यवस्था को विफल कर दिया है। उन्होंने करोड़ों लोगों को अनौपचारिक नौकरियों में धकेल दिया है और छोटे व्यवसायों को नष्ट करके लाखों लोगों को भारत छोड़ने के लिए मजबूर किया है। उनकी एकमात्र रुचि उन उत्पादों में है जो अडानी द्वारा बड़े पैमाने पर उत्पादित किए जाते हैं!हरियाणा की जनता इस बात को भली-भांति समझती है। वे जल्द ही मोदीजी की मित्र पूंजीवादी नीतियों के चक्रव्यूह को तोड़ने के लिए अगला प्रहार करेंगे।
रायपुर’पितृ पक्ष, पितरों का याद करने का समय माना गया है। भाद्र शुक्ल पूर्णिमा को ऋषि तर्पण से आरंभ होकर यह आश्विन कृष्ण अमावस्या तक जिसे महालया कहते हैं उस दिन तक पितृ पक्ष चलता है। इस दौरान पितरों की पूजा की जाती है और उनके नाम से तर्पण, श्राद्ध, पिंडदान और ब्राह्मण भोजन करवाया जाता है। पितृ पूजा में कई बातें ऐसी हैं जो रहस्यमयी हैं और लोगों के मन में सवाल उत्पन्न करते हैं कि आखिर ऐसा क्यों होता है.. श्राद्ध का नियम है कि दोपहर के समय पितरों के नाम से श्राद्ध और ब्राह्मण भोजन करवाया जाता है। शास्त्रों में सुबह और शाम का समय देव कार्य के लिए बताया गया है।लेकिन दोपहर का समय पितरों के लिए माना गया है। इसलिए कहते हैं कि दोपहर में भगवान की पूजा नहीं करनी चाहिए। दिन का मध्य पितरों का समय होता है। दरअसल पितर मृत्युलोक और देवलोक के मध्य लोक में निवास करते हैं जो चंद्रमा के ऊपर बताया जाता है। दूसरी वजह यह है कि दोपहर से पहले तक सूर्य की रोशन पूर्व दिशा से आती है जो देवलोक की दिशा मानी गई है। दोपहर में सूर्य मध्य में होता है जिससे पितरों को सूर्य के माध्यम से उनका अंश प्राप्त हो जाता है। तीसरी मान्यता यह है कि, दोपहर से सूर्य अस्त की ओर बढ़ना आरंभ कर देता है और इसकी किरणें निस्तेज होकर पश्चिम की ओर हो जाती है। जिससे पितृगण अपने निमित्त दिए गए पिंड, पूजन और भोजन को ग्रहण कर लेते हैं। पितृपक्ष में पितरों का आगमन दक्षिण दिशा से होता है। शास्त्रों के अनुसार, दक्षिण दिशा में चंद्रमा के ऊपर की कक्षा में पितृलोक की स्थिति है। इस दिशा को यम की भी दिशा माना गया है। इसलिए दक्षिण दिशा में पितरों का अनुष्ठान किया जाता है। रामायण में उल्लेख मिलता है कि जब दशरथ की मृत्यु हुई थी तो भगवान राम ने स्वपन में उनको दक्षिण दिशा की तरफ जाते हुए देखा था। रावण की मृत्य से पहले त्रिजटा ने स्वप्न में रावण को गधे पर बैठकर दक्षिण दिशा की ओर जाते हुए देखा था। सनातन धर्म के अनुसार, किसी वस्तु के गोलाकर रूप को पिंड कहा जाता है। शरीर को भी पिंड माना जा सकता है। धरती को भी एक पिंड रूप है। हिंदू धर्म में निराकार की पूजा की बजाय साकार स्वरूप की पूजा को महत्व दिया गया है क्योंकि इससे साधना करना आसान होता है। इसलिए पितरों को भी पिंड रूप मानकर यानी पंच तत्वों में व्यप्त मानकर उन्हें पिडदान दिया जाता है। पिंडदान के समय मृतक की आत्मा को अर्पित करने के लिए चावल को पकाकर उसके ऊपर तिल, शहद, घी, दूध को मिलाकर एक गोला बनाया जाता है जिसे पाक पिंडदान कहते हैं। दूसरा जौ के आटे का पिंड बनाकर दान किया जाता है। पिंड का संबंध चंद्रमा से माना जाता है। पिंड चंद्रमा के माध्यम से पितरों को प्राप्त होता है। ज्योतिषीय मत यह भी है कि पिंड को तैयार करने में जिन चीजों का प्रयोग होता है उससे नवग्रहों का संबंध है। इसके दान से ग्रहों का अशुभ प्रभाव दूर होता है। इसलिए पिंडदान से दान करने वाले को लाभ मिलता है। पितरों की पूजा में सफेद रंग का इस्तेमाल इसलिए किया जाता है क्योंकि सफेद रंग सात्विकता का प्रतीक है। आत्मा का कोई रंग नहीं है। जीवन के उस पार की दुनियां रंग विहीन पारदर्शी है इसलिए पितरों की पूजा में सफेद रंग का प्रयोग होता है। दूसरी वजह यह है कि सफेद रंग चंद्रमा से संबंध रखता है जो पितरों को उनका अंश पहुंचाते हैं। पुराणों के अनुसार, व्यक्ति की मृत्यु जिस तिथि को हुई होती है, उसी तिथि में उसका श्राद्ध करना चाहिए। यदि जिनकी मृत्यु के दिन की सही जानकारी न हो, उनका श्राद्ध अमावस्या तिथि को करना चाहिए। श्राद्ध मृत्यु वाली तिथि को किया जाता है। मृत्यु तिथि के दिन पितरों को अपने परिवार द्वारा दिए अन्न जल को ग्रहण करने की आज्ञा है। इसलिए…
रायपुर:उप मुख्यमंत्री तथा लोक निर्माण मंत्री अरुण साव अमेरिका के अध्ययन प्रवास के बाद आज सुबह रायपुर पहुंचे। राजधानी वापसी पर स्वामी विवेकानंद विमानतल पर उनका भव्य और आत्मीय स्वागत किया गया। उप मुख्यमंत्री श्री साव ने बताया की अमेरिका के अपनी अध्ययन यात्रा के दौरान उन्होंने पांच प्रमुख शहरों का भ्रमण कर सड़क निर्माण और सड़कों के रखरखाव की तकनीक, इनमें एआई (Artificial Intelligence) के उपयोग और पुल-पुलियों के निर्माण को लेकर तकनीकी विशेषज्ञों से चर्चा की। उन्होंने लोक निर्माण विभाग के सचिव डॉ. कमलप्रीत सिंह के साथ अमेरिका के बड़े-बड़े शहरों में निर्माण कार्यों में प्रयुक्त होने वाली तकनीकों का अध्ययन किया।