रायपुर:रायपुर लोकसभा की बहुचर्चित विधान सभा सीट रायपुर दक्षिण के लिए हुए उपचुनाव के नतीजे 23 नवंबर को घोषित हो जाएंगे. यह सीट दोनों पार्टियों, कांग्रेस व भाजपा के लिए करो या मरो की स्थिति में नहीं है अलबत्ता प्रतिष्ठा की लड़ाई जरूर है. छत्तीसगढ में भारतीय जनता पार्टी मजबूत बहुमत के साथ सरकार में है इसलिए इस सीट को जीतने से उसकी राजनीतिक स्थिति पर विशेष फर्क नहीं पड़ेगा. विधान सभा में उसके विधायकों की संख्या में एक का इज़ाफा होगा लेकिन इससे अधिक महत्वपूर्ण घटना सांसद बृजमोहन अग्रवाल के प्रभा मंडल पर पड़ने वाले प्रभाव की रहेगी. वे आठ बार और इस क्षेत्र से लगातार 4 बार के विधायक रहे हैं तथा उनके इस्तीफे से यह सीट खाली हुई है. उन्होंने अपनी पसंद के उम्मीदवार पूर्व सांसद सुनील सोनी को टिकिट दिलवाई और जैसा कि उनका बयान रहा है, उन्हें सामने रखकर उन्होंने खुद यह चुनाव लड़ा है. ऐसा कहने के पीछे उनका मंतव्य मतदाताओं को यह भरोसा देना था कि सोनी तथा वे अलग-अलग नहीं है लिहाजा दक्षिण के मतदाता उन्हें वैसा ही समर्थन दें जैसा कि अब तक उन्हें भारी भरकम मतों से जीताकर देते रहे हैं. जाहिर है, बृजमोहन के खुलकर मैदान में उतरने से उनकी राजनीतिक साख दांव पर लग गई है. दूसरी ओर कांग्रेस यह चुनाव हार भी जाती है तो उसकी सेहत पर खास अंतर नहीं आएगा. इससे एक बार पुन: सिद्ध हो जाएगा कि बृजमोहन को पराजित करना उसके बस में नहीं. कांग्रेस गत तीन दशक से , परिसीमन के पूर्व व बाद में यह सीट हारती रही है. इसलिए इस बार भी वह हार को सहज स्वीकार कर लेगी लेकिन यदि उलट-पलट परिणाम आए तो ? निश्चय ही वे चौंकाने वाले रहेंगे तथा इसका राजनीतिक संदेश दूर तक जाएगा. मसलन यदि भाजपा हार गई तो वह पार्टी से कही अधिक सांसद बृजमोहन अग्रवाल की नैतिक हार होगी. इससे प्रदेश भाजपा की राजनीति में उनकी पकड कमजोर होगी. उनके साथ पार्टी की प्रतिष्ठा को भी धक्का लगेगा तथा प्रदेश में कानून-व्यवस्था के सवाल पर सरकार के प्रति जनता के असंतोष की पुष्टि हो जाएगी. इसके अलावा अब तक अपराजेय रायपुर दक्षिण पहली बार भाजपा मुक्त हो जाएगा. और यदि कांग्रेस जीतती है तो वह भी नया इतिहास बनाएगी. प्रथमत: वह इस निर्वाचन क्षेत्र में सतत पराजय की मानसिकता से उबरेगी. द्वितीय – वह साबित करेगी कि बृजमोहन अग्रवाल अपराजेय नहीं है तथा उन्हें अथवा उनके नुमाइंदे को भी उनके क्षेत्र में हराया जा सकता है. तृतीय- इस उपचुनाव को जीतने से पार्टी का मनोबल बढ़ेगा. चुनाव प्रचार अभियान के दौरान दिखाई गई एकता की ताकत सिद्ध होगी. संगठन मजबूत होगा तथा पार्टी का प्रादेशिक नेतृत्व जो दीपक बैज के हाथ में है, पर केन्द्रीय नेतृत्व का भरोसा कायम रहेगा. इसके अलावा पार्टी के विधायकों की संख्या 35 से बढ़कर 36 हो जाएगी. अर्थात हार अथवा जीत की इन दोनों स्थितियों में रायपुर दक्षिण का उपचुनाव 2023 के विधान सभा चुनाव से अधिक महत्वपूर्ण व ऐतिहासिक बन चुका है. वह दोनों पार्टियों की राजनीतिक दिशा तय करेगा. हार की स्थिति में भाजपा को इस क्षेत्र में नये नेतृत्व पर विचार करना होगा और कांग्रेस को अपने नये विजेता की पीठ आगे भी थपथपानी होगी. इन दिनों जय-पराजय के सवाल पर चल रही ये सारी अटकलें 23 नवंबर को मतगणना के साथ ही समाप्त हो जाएंगी. सत्य सामने आ जाएगा. दरअसल तरह-तरह के अनुमानों को हवा इसलिए मिल रही हैं क्योंकि जिस भारी मतदान की अपेक्षा दोनों पार्टियां कर रही थीं, वह ध्वस्त हो चुका. 13 नवंबर को हुए मतदान में लगभग 50 प्रतिशत वोट पड़े जबकि 2023 में 60 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ था. यानी पूर्व की तुलना में दस फीसदी मतदान कम हुआ. कम मतदान से किस पार्टी को फायदा मिलेगा या किसका नुकसान होगा, इसका आकलन करना कठिन है. हालांकि अनुमानों की बाढ़ बृजमोहन अग्रवाल के पक्ष में है. शहर के बहुसंख्य प्रबुद्ध मतदाताओं का ख्याल है कि रायपुर दक्षिण से भाजपा की जीत तय…