+91 XXXXXXXXXX contact@chouranews.com
Thursday, September 19, 2024
देश

शकुनि के पांसों से खेलने की कमल (नाथ) छाप चतुराई* *(आलेख : बादल सरोज)

100views
Share Now

रायपुर:दो चुनाव पूर्व सर्वे में धमाकेदार पूर्वानुमान, शिवराज सिंह की जाहिर उजागर हड़बड़ी और बौखलाहट, भाजपा में असंतोष की खदबदाहट के बावजूद कमलनाथ बेचैन है और इस बेचैनी में वे इतने अकुलाये हुए हैं कि शकुनि के पांसों से खेलने के लिए आतुर हैं। पिछले दिनों किसी बजरंग सेना का कांग्रेस में विलय कराना इसी का एक नमूना है। मध्यप्रदेश की राजनीति में और खुद कांग्रेस के एक हलके में भी इन दिनों इसे कमलनाथ छाप चतुराई कहा जाने लगा है। ऐसी ही चतुराई एक बार वे प्रदेश के सारे दफ्तरों में हनुमान चालीसा का पाठ करवा के दिखा चुके हैं। खुलेआम हिन्दूराष्ट्र की स्थापना का एलान करने वाले अपशब्द-वाचक कथित बाबा धीरेन्द्र शास्त्री के दरबार में जाकर बता चुके हैं। इसी तरह का काम उन्होंने खुद अपने हाथों इस कथित बजरंग सेना का कांग्रेस में स्वागत करके किया है।

यह तब है, जब वे और प्रदेश की पूरी जनता शिवराज की लोकलुभावन घोषणाओं के फुस्स होने और उनके मुकाबले कांग्रेस द्वारा किये गए वायदों को सकारात्मक तरजीह मिलते हुए देख रहे हैं – खुद उनकी पार्टी कर्नाटक में खुद मोदी की अगुआई में हुए उच्च तीव्रता के हिंदुत्व-केन्द्रित चुनाव प्रचार के मुकाबले अपने आर्थिक वायदों और बजरंग दल पर प्रतिबंध के साहसी एलान को मिले जनता के प्रतिसाद के रूप में हासिल कर चुकी है। मगर कमलनाथ की सुई वहीँ अटकी हुयी है। वे भगवा जनेऊ की जगह तिरंगे जनेऊ को बेहतर बनाने का विश्वास दिलाना चाहते हैं और इस तरह खुद का तो जो करना चाहते हैं, सो वे जाने, जनता के विवेक का अपमान अवश्य कर रहे हैं ।

इन पंक्तियों का यह मतलब बिलकुल नहीं है कि कांग्रेस या किसी भी पार्टी को नास्तिक होकर चुनाव लड़ना चाहिये। इसका मतलब यह है कि किसी भी पार्टी को आस्तिक होने का दिखावा करते हुए चुनाव कतई नहीं लड़ना चाहिये, इसलिए कि ऐसा करना सिर्फ धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक नजरिये से ही अनुचित और अस्वीकार्य नहीं है, निर्वाचन नियमावली के हिसाब से भी अपराध है। इन दिनों मोदी नियुक्त केन्द्रीय चुनाव आयोग – कें चु आ – अपने आका के ऐसे कर्मों के प्रति धृतराष्ट्र बना बैठा है, इसका मतलब यह नहीं है कि अवैधानिकता वैधानिक हो गयी। ये विधानसभा के चुनाव हैं, कोई चारों धाम की यात्रा नहीं, जहां मेरा कौआ हंस साबित करने की चतुराई दिखाई जाए। कमलनाथ महात्मा गांधी से बड़े कांग्रेसी नहीं है, जिनका मानना था कि राजनीति में धर्म और धार्मिक प्रतीकों का इस्तेमाल सख्ती के साथ प्रतिबंधित कर दिया जाना चाहिये। कमलनाथ नेहरू से बड़े कांग्रेसी भी नहीं है, जिन्होंने सोमनाथ के मंदिर का उदघाटन करने को तत्पर बैठे राष्ट्रपति को चिट्ठी लिखकर कहा था कि बाबू राजेद्र प्रसाद एक व्यक्ति की हैसियत से कहीं भी जा सकते हैं, किन्तु भारत के राष्ट्रपति के रूप में ऐसे कामों से उन्हें दूर रहना चाहिये। राजनीति जब मैदानी राजनीतिक कार्यकर्ताओं के हाथ से निकलकर सी ई ओ मार्का प्रबंधक और व्यवसाय निपुणों के हाथ में पहुँच जाती है, तब वही होता है, जो अत्युत्साही कमलनाथ कर रहे हैं।

एक तरफ उन्होंने 12 जून को “मैं कमलनाथ वचन देता हूँ कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार बनने पर गैस सिलेंडर 500 रूपये में देंगे, हर महिला को 1500 रूपये महीने देंगे, 100 यूनिट बिजली माफ़ और 200 यूनिट बिजली हाफ करेंगे, किसानो का कर्जा माफ़ करेंगे और पुरानी पेंशन योजना लागू करेंगे” का संकल्प ट्वीट करके लिया है ; वहीं दूसरी तरफ वे भगवा-भगवा की आंखमिचौली खेलने में भी लगे हैं। यह अच्छी बात नहीं – यह बिलकुल भी अच्छी बात नहीं है। इस तरह की पतली गलियाँ किसी निरापद मंजिल तक नहीं पहुंचाती। ऐसी भूल-भुलैयाओं में जरूर पहुंचा सकती हैं जहां से बाहर निकलना आसान नहीं है।

यह सॉफ्ट हिंदुत्व भी नहीं, जिसे कई बार कांग्रेस आजमा कर देख चुकी है और ‘हलुआ मिला न मांडे, दोऊ दीन से गए पांडे’ की अवस्था को प्राप्त हो चुकी है। यह शकुनि की बिसात पर शकुनि के पांसों से खेलने की वह चतुराई है, जिसमें संविधान और लोकतंत्र की हार तय दिखती है।

*(लेखक पाक्षिक ‘लोकजतन’ के संपादक और अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव हैं।)

Share Now

Leave a Response