जबलपुर:निन्दा से कभी भी विचलित नहीं होना चाहिए। कुछ रचनाकारों ने तो ‘निन्दक नियरे राखिए’ आदि कहकर निन्दकों से होने वाले लाभ की प्रशंसा भी है। जो बुद्धिमान् मनुष्य होते हैं वे इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि शरीर और आत्मा दो ही हैं। यदि शरीर की निन्दा कोई करेगा तो शरीर तो मल-मूत्रादि का घर होने से स्वतः निन्दित है और यदि कोई आत्मा की निन्दा करता है तो आत्मा तो सभी में एक ही है। यदि निन्दक अपनी आत्मा की निन्दा करता है तो उसके स्वयं की भी निन्दा हो जाती है। इस तरह से यदि विचार करें तो निन्दा का कोई प्रभाव हमारे ऊपर नहीं पड़ेगा।
उक्त बातें उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती ‘1008’ ने परमहंसी गंगा आश्रम में चल रहे चातुर्मास्य प्रवचन के अवसर पर कही।
उन्होंने कहा कि जब हम शरीर में अहं बुद्धि कर लेते हैं तो हमें सुख और दुःख का अनुभव होने लगता है। ज्ञानी लोग सुख और दुःख से परे रहते हैं क्योंकि उनका शरीर से अहं भाव मिट चुका होता है।
शङ्कराचार्य के प्रवचन के पूर्व शङ्कराचार्य महाराज भागवत कथा पंडाल पर दोपहर 3:30 पर पहुंचे जहाँ पर संस्कृत विद्या पीठ गुरुकुल एवं बनारस में अध्ययनरत छात्रों के द्वारा पूज्य शंकराचार्य जी महाराज का हर हर महादेव एवं जय गुरुदेव के जयघोष के साथ स्वागत किया पूज्य महाराजा श्री, ने मंच पर पहुंचते ही, सर्वप्रथम ब्रह्मलीन जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज के, तैल चित्र पर पूजन अर्चन किया उसके उपरांत वह व्यास पीठ पर आसीन हुए जहां पर आज श्री मद भागवत कथा के यजमान रहे व्यासपीठ का पूजन किया और पूज्य शंकराचार्य जी का आशीर्वाद लिया भागवत कथा के मंच पर प्रबुद्ध लोगो ने भक्तो को संबोधित किया मंच पर प्रमुख रूप से शंकराचार्य जी महाराज के निजी सचिव चातुर्मास्य समारोह समिति के अध्यक्ष *ब्रह्मचारी सुबुद्धानन्द , ज्योतिष्पीठ पण्डित आचार्य रविशंकर द्विवेदी शास्त्री ज्योतिष पीठ शास्त्री पं राजेन्द्र शास्त्री , दंडी स्वामी अम्बरीशानन्द महाराज,आदि ने अपने विचार व्यक्त किए मंच पर प्रमुख रूप से प शङ्कराचार्य महाराज की पूर्णाभिषिक्त शिष्या साध्वी पूर्णाम्बा एवं साध्वी शारदाम्बा उपस्तिथ रही। मंच का संयोजन अरविन्द मिश्र* एवं संचालन *पंडित राजकुमार शास्त्री ने किया।